भारतीय राजनीति की त्रासदी पर बोले हिमांशु कुमार
रामकृष्ण मणि त्रिपाठी स्मृति समारोह में व्याख्यान, स्मृति चर्चा और सांस्कृतिक कार्यक्रम
गोरखपुर। प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा है कि विकास के मौजूदा माडल से हिंसा नहीं रूकेगी। भारतीय राजसत्ता के विकास का माडल यही है कि गरीब से उसकी जमीन, जंगल, पहाड, नदी सब छीनकर अमीर को सौंप दो। यही हुआ है इसलिए अशांति बढ रही है। उन्हांेंने कहा कि हमारा राजनीतिक ढांचा और सिस्टम गरीबों के जल, जंगल, जमीन और जीवन पर हमले को सपोर्ट करता है। इसलिए यह हिंसा से भरा है। इससे अहिंसा निकल ही नहीं सकती।
हिमाशु कुमार मंगलवार को पीपुल्स फोरम और राम कृष्ण त्रिपाठी मेमोरियल टस्ट के तत्वावधान में आयोजित राम कृष्ण मणि ़ित्रपाठी की पहली पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति समारोह में लोकतं़़त्र की ़़़़त्रासदी विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज का मतलब है उसमें रहने वाले सब बराबर हैं और उन्हें न्याय की गारंटी होगी। जिस समाज में बराबरी और न्याय नहीं है, वह समाज नहीं है। सच्चाई यही है कि देश के बहुसंख्य आदिवासियों, दलितो, किसानों और मजदूरों के हिस्से बराबरी और न्याय नहीं है। आदिवासियों के साथ सरकार का युद्ध चल रहा है। सरकार उन्हें विकास के लिए सबसे बडा खतरा मानती है। आदिवासी मानता है कि प्रकृति का कोई मालिक नहीं हो सकता। सरकार बंदूक के बलपर कहती है कि इसके मालिक टाटा, एस्सार, जिंदल हो सकते हैं। छत्तीसगढ सरकार ने 2005 में टाटा, एस्सार, जिंदल की कम्पनियों से एमओयू किए। इसके तत्तकाल बाद 5000 गुंडों और पांच हजार सुरक्षा बलों को आदिवासियों के गांव खाली कराने के लिए छोड़ दिया। इस अभियान को सलवा जुडूम नाम दिया गया। इन हमलावारों ने 650 गांवों में सैकड़ों बूढ़ों-बच्चों का कत्ल किया। सैकड़ों महिलाओं के साथ यौन दुव्र्यवहार व बलात्कार किया गया। इस हमले में साढ़े तीन लाख लोगांे को उनके घर, जमीन से खदेड़ दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जब इसे गैरकानूनी और गैसंवैधानिक घोषित किया तब भी इसे सत्ता इसे संचालित करती रही।
उन्होंनें कहा कि आज भारतीय राज सत्ता यह कह रही है कि हमारे विकास के माडल को जो स्वीकार नहीं करता वह विकास विरोधी और राष्ट विरोधी है। नौ प्रतिशत की विकास दर पाने के लिए भारत के खनिज क्षेत्रों का दोहन जरूरी है। इसलिए आदिवासियों पर राज्य सत्ता दुश्मन देश की तरह हमलावर है। उन्होेंने गांधी को याद करते हुए कहा कि गांधी ने कहा कि देश ने यदि अंग्रेजो के विकास के माडल को स्वीकार किया तो उसे एक दिन अपने ही जनता से युद्ध करना होगा क्योंकि अंगेजी विकास माडल हिंसक विकास का माडल है। इससे पर्यावरण का भी विनाश होगा।
इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार एवं आलोचक प्रो रामदेव शुक्ल ने राम कष्ण मणि त्रिपाठी के एक लेख वियांड पालिटिक्स को याद करते हुए कहा कि इस लेख में आधुनिक विकास के स्रोत की शिनाख्त करते हुए कहा कि आधुनिक विकास का माडल विज्ञान, पूंजी और पालिटिक्स के सांठगांठ का माडल है जो लोकतंत्र और आमजन के विरूद्ध है।
इस सत्र का संचालन पीपुल्स फोरम के वरिष्ठ सदस्य मनोज कुमार सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन स्व रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के पुत्र श्रीश मणि त्रिपाठी ने किया।
रामकृष्ण मणि का वीडियो इंटरव्यू दिखाया गया
समारोह की शुरूआत गोरखपुर फिल्म सोसाइटी और जन संस्कृति मंच के फिल्म समूह द्वारा निर्मित रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के वीडियो इंटरव्यू का प्रदर्शन किया गया। 35 मिनट के इस वीडियो इंटरव्यू में रामकृष्ण मणि त्रिपाठी आजमगढ में अपने बचपन, इलाहाबाद में पढाई व शिक्षण तथा गोरखपुर में बिताए छह दशक के जीवन की चर्चा करते हुए इन शहरों के बदलते फिजां की बात करते हुए समाज के अराजनीतिक होते जाने पर चिंता जताते है। वह गंगा-जमुनी तहजीब की चर्चा करते हुए साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ कस कर लोहा लेने के लिए निरन्तर आंदोलन की आवश्यकता जताते है। वह अपनी पंसदीदा पुस्तकों का जिक्र करते हुए एक स्थान पर कहते हैं कि मैने हमेशा उन पुस्तकों, सिनेमा को पढ़ना-देखाना पंसद किया जो स्थापित सिद्धान्तों पर सवाल करती है। इस वीडियों इंटरव्यू का निर्देेशन संजय जोशी ने किया है। उन्होंने बताया कि इस इंटरव्यू को 8 मई 2010 को उनके घर पर रिकार्ड किया गया था।
रामकृष्ण मणि जैसे विराट व्यक्तित्व का मित्र होना गौरवान्वित करता है-ओपी मालवीय
स्मृति समारोह के दूसरे सत्र में रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा हुई। इस सत्र के मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे ओपी मालवीय ने रामकृष्ण मणि को अभिन्न और आत्मीय मित्र के रूप में याद करते हुए कहा कि मुझे गर्व है कि उनके साथ काफी समय विताने का मौका मिला। उनका एक विशेष गुण हास-परिहास का था जिससे कम लोग परिचित है। बात करते-करते कब उनके मुंह से हंसी का फव्वारा छूट जाए पता नहीं चलता था। बाद के दिनों मे वह लगातार गंभीर होते चले गए और उनका अध्ययन व मनन गहरा होता है। श्री मालवीय ने स्व त्रिपाठी को रूसी उपन्यासों का विशेषज्ञ बताया। शहर के मशहूर चिकित्सक डा अजीज अहमद ने स्व मणि को ज्ञान का खजाना बताया और कहा कि दुनिया का कोई ऐसा विषय नहीं था जिसको जानने में उनकी रूचि न हो। उन्होंने कहा कि उनकी कमी इस शहर को हमेशा खलेगी। गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो श्रीकाश मणि ने कहा कि स्व रामकृष्ण मणि कहा करते थे कि जो लोक के करीब न हो वह लोकतंत्र नहीं है। वह देश के लोकतंत्र के लगातार सिकुड़ते जाने पर चिंतित थे। इस सत्र में ओपी राय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन कर रहे डा चन्द्रभूषण अंकुर ने रामकृष्ण मणि की विलक्षण स्मृति का उल्लेख किया।
नाटक बयार और सूफी गायन ने लोगों का मन मोहा
स्मृति समारोह के अंतिम सत्र में नई दिल्ली से आए अथक थियेटर ग्रपु के कलाकारों ने नाटक बयार का मंचन किया। रौनक खान निर्देशित इस नाटक में नाटकों में अभिनय की रूचि रखने वाले एक नौजवान की कहानी है जो गांव में आई नौटंकी मंडली के साथ घर छोड़कर भाग जाता है लेकिन नौटंकी मंडली बन जाती है और उसका संचालक अपनी पत्नी को छोड़कर भाग जाता है। यह नौजवान आखिर में परित्यक्ता स्त्री से विवाह कर लेता है लेकिन उसके अपनी जिंदगी चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। नाटक की पटकथा रौनक खान ने ही लिखी थी। इस नाटक ने लोगों को खूब प्रभावित किया। इसके बाद कुशीनगर के कप्तानगंज कस्बे से आए असगर अली वारसी और उनके साथियों ने सूफी गीत, गजल और कव्वाली गायन किया। इसे सुनने के लिए देर रात तक श्रोता जमे रहे।
रामकृष्ण मणि त्रिपाठी स्मृति समारोह में व्याख्यान, स्मृति चर्चा और सांस्कृतिक कार्यक्रम
गोरखपुर। प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कहा है कि विकास के मौजूदा माडल से हिंसा नहीं रूकेगी। भारतीय राजसत्ता के विकास का माडल यही है कि गरीब से उसकी जमीन, जंगल, पहाड, नदी सब छीनकर अमीर को सौंप दो। यही हुआ है इसलिए अशांति बढ रही है। उन्हांेंने कहा कि हमारा राजनीतिक ढांचा और सिस्टम गरीबों के जल, जंगल, जमीन और जीवन पर हमले को सपोर्ट करता है। इसलिए यह हिंसा से भरा है। इससे अहिंसा निकल ही नहीं सकती।
हिमाशु कुमार मंगलवार को पीपुल्स फोरम और राम कृष्ण त्रिपाठी मेमोरियल टस्ट के तत्वावधान में आयोजित राम कृष्ण मणि ़ित्रपाठी की पहली पुण्यतिथि पर आयोजित स्मृति समारोह में लोकतं़़त्र की ़़़़त्रासदी विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि समाज का मतलब है उसमें रहने वाले सब बराबर हैं और उन्हें न्याय की गारंटी होगी। जिस समाज में बराबरी और न्याय नहीं है, वह समाज नहीं है। सच्चाई यही है कि देश के बहुसंख्य आदिवासियों, दलितो, किसानों और मजदूरों के हिस्से बराबरी और न्याय नहीं है। आदिवासियों के साथ सरकार का युद्ध चल रहा है। सरकार उन्हें विकास के लिए सबसे बडा खतरा मानती है। आदिवासी मानता है कि प्रकृति का कोई मालिक नहीं हो सकता। सरकार बंदूक के बलपर कहती है कि इसके मालिक टाटा, एस्सार, जिंदल हो सकते हैं। छत्तीसगढ सरकार ने 2005 में टाटा, एस्सार, जिंदल की कम्पनियों से एमओयू किए। इसके तत्तकाल बाद 5000 गुंडों और पांच हजार सुरक्षा बलों को आदिवासियों के गांव खाली कराने के लिए छोड़ दिया। इस अभियान को सलवा जुडूम नाम दिया गया। इन हमलावारों ने 650 गांवों में सैकड़ों बूढ़ों-बच्चों का कत्ल किया। सैकड़ों महिलाओं के साथ यौन दुव्र्यवहार व बलात्कार किया गया। इस हमले में साढ़े तीन लाख लोगांे को उनके घर, जमीन से खदेड़ दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने जब इसे गैरकानूनी और गैसंवैधानिक घोषित किया तब भी इसे सत्ता इसे संचालित करती रही।
उन्होंनें कहा कि आज भारतीय राज सत्ता यह कह रही है कि हमारे विकास के माडल को जो स्वीकार नहीं करता वह विकास विरोधी और राष्ट विरोधी है। नौ प्रतिशत की विकास दर पाने के लिए भारत के खनिज क्षेत्रों का दोहन जरूरी है। इसलिए आदिवासियों पर राज्य सत्ता दुश्मन देश की तरह हमलावर है। उन्होेंने गांधी को याद करते हुए कहा कि गांधी ने कहा कि देश ने यदि अंग्रेजो के विकास के माडल को स्वीकार किया तो उसे एक दिन अपने ही जनता से युद्ध करना होगा क्योंकि अंगेजी विकास माडल हिंसक विकास का माडल है। इससे पर्यावरण का भी विनाश होगा।
इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कथाकार एवं आलोचक प्रो रामदेव शुक्ल ने राम कष्ण मणि त्रिपाठी के एक लेख वियांड पालिटिक्स को याद करते हुए कहा कि इस लेख में आधुनिक विकास के स्रोत की शिनाख्त करते हुए कहा कि आधुनिक विकास का माडल विज्ञान, पूंजी और पालिटिक्स के सांठगांठ का माडल है जो लोकतंत्र और आमजन के विरूद्ध है।
इस सत्र का संचालन पीपुल्स फोरम के वरिष्ठ सदस्य मनोज कुमार सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन स्व रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के पुत्र श्रीश मणि त्रिपाठी ने किया।
रामकृष्ण मणि का वीडियो इंटरव्यू दिखाया गया
समारोह की शुरूआत गोरखपुर फिल्म सोसाइटी और जन संस्कृति मंच के फिल्म समूह द्वारा निर्मित रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के वीडियो इंटरव्यू का प्रदर्शन किया गया। 35 मिनट के इस वीडियो इंटरव्यू में रामकृष्ण मणि त्रिपाठी आजमगढ में अपने बचपन, इलाहाबाद में पढाई व शिक्षण तथा गोरखपुर में बिताए छह दशक के जीवन की चर्चा करते हुए इन शहरों के बदलते फिजां की बात करते हुए समाज के अराजनीतिक होते जाने पर चिंता जताते है। वह गंगा-जमुनी तहजीब की चर्चा करते हुए साम्प्रदायिक राजनीति के खिलाफ कस कर लोहा लेने के लिए निरन्तर आंदोलन की आवश्यकता जताते है। वह अपनी पंसदीदा पुस्तकों का जिक्र करते हुए एक स्थान पर कहते हैं कि मैने हमेशा उन पुस्तकों, सिनेमा को पढ़ना-देखाना पंसद किया जो स्थापित सिद्धान्तों पर सवाल करती है। इस वीडियों इंटरव्यू का निर्देेशन संजय जोशी ने किया है। उन्होंने बताया कि इस इंटरव्यू को 8 मई 2010 को उनके घर पर रिकार्ड किया गया था।
रामकृष्ण मणि जैसे विराट व्यक्तित्व का मित्र होना गौरवान्वित करता है-ओपी मालवीय
स्मृति समारोह के दूसरे सत्र में रामकृष्ण मणि त्रिपाठी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा हुई। इस सत्र के मुख्य वक्ता इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे ओपी मालवीय ने रामकृष्ण मणि को अभिन्न और आत्मीय मित्र के रूप में याद करते हुए कहा कि मुझे गर्व है कि उनके साथ काफी समय विताने का मौका मिला। उनका एक विशेष गुण हास-परिहास का था जिससे कम लोग परिचित है। बात करते-करते कब उनके मुंह से हंसी का फव्वारा छूट जाए पता नहीं चलता था। बाद के दिनों मे वह लगातार गंभीर होते चले गए और उनका अध्ययन व मनन गहरा होता है। श्री मालवीय ने स्व त्रिपाठी को रूसी उपन्यासों का विशेषज्ञ बताया। शहर के मशहूर चिकित्सक डा अजीज अहमद ने स्व मणि को ज्ञान का खजाना बताया और कहा कि दुनिया का कोई ऐसा विषय नहीं था जिसको जानने में उनकी रूचि न हो। उन्होंने कहा कि उनकी कमी इस शहर को हमेशा खलेगी। गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो श्रीकाश मणि ने कहा कि स्व रामकृष्ण मणि कहा करते थे कि जो लोक के करीब न हो वह लोकतंत्र नहीं है। वह देश के लोकतंत्र के लगातार सिकुड़ते जाने पर चिंतित थे। इस सत्र में ओपी राय ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन कर रहे डा चन्द्रभूषण अंकुर ने रामकृष्ण मणि की विलक्षण स्मृति का उल्लेख किया।
नाटक बयार और सूफी गायन ने लोगों का मन मोहा
स्मृति समारोह के अंतिम सत्र में नई दिल्ली से आए अथक थियेटर ग्रपु के कलाकारों ने नाटक बयार का मंचन किया। रौनक खान निर्देशित इस नाटक में नाटकों में अभिनय की रूचि रखने वाले एक नौजवान की कहानी है जो गांव में आई नौटंकी मंडली के साथ घर छोड़कर भाग जाता है लेकिन नौटंकी मंडली बन जाती है और उसका संचालक अपनी पत्नी को छोड़कर भाग जाता है। यह नौजवान आखिर में परित्यक्ता स्त्री से विवाह कर लेता है लेकिन उसके अपनी जिंदगी चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है। नाटक की पटकथा रौनक खान ने ही लिखी थी। इस नाटक ने लोगों को खूब प्रभावित किया। इसके बाद कुशीनगर के कप्तानगंज कस्बे से आए असगर अली वारसी और उनके साथियों ने सूफी गीत, गजल और कव्वाली गायन किया। इसे सुनने के लिए देर रात तक श्रोता जमे रहे।