गुरुवार, 10 नवंबर 2011

जान भी ले रहा है बैरी जहजिया

लोकगीतों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में गरीब महिलाएं पानी के जहाज और रेलगाड़ी को बैरी मानती रही हंै क्योंकि दोनों उनके पिया को उनसे दूर ले जाते रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में पानी का जहाज सैकडों मजदूरों के घर वालांे के लिए पहले से और ज्यादा बैरी हो गया है क्योंकि निष्प्रयोज्य हो चुके पानी के पुराने जहाजों को तोड़ने के काम में पूर्वी उत्तर प्रदेश के गरीब मजदूर न सिर्फ अपनी जान गंवा रहे हैं बल्कि गंभीर बीमारियांे से ग्रसित भी हो रही है लेकिन पेट के लिए उन्हें यह काम करना पड़ रहा है।
गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर जिले के दर्जनों गांवों के मजदूर गुजरात के बंदरगाहों पर पुराने और निष्प्रयोज्य हो चुके जहाजों को तोड़ने के काम में लगे हैं। इस काम को बेहद खतरनाक माना जाता है।
महराजगंज जिले के कैम्पियरगंज क्षेत्र के मनोहर चक गांव के एक दर्जन से अधिक लोग गुजरात के बंदरगाहों पर पुराने और निष्प्रयोज्य जहाजों को तोड़ने के खतरनाक काम में लगे हुए है। गौकरण चैहान इन्हीं में से एक है। गौकरण चैहान के मुताबिक बगल के गांव पड़हवा से भी 10-12 लोग गुजरात में जहाज तोड़ने का काम करते है। गौकरण वर्ष 2007 में गांव लौट आया था। इसके बाद वह गुजरात नहीं गया क्योंकि घर पर उसके पिता अकेले थे और वह खेती-बारी के काम में उनका हाथ बंटाना चाहता था। उसके मुताबिक जहाज तोड़ने के काम में लगे मजदूरों को पेचिस की बीमारी आम थी। वह भी इसका शिकार हुआ था।
कुशीनगर जिले के कप्तानगंज ब्लाक के बसहिया गांव निवासी 24 वर्षीय गौतम साहनी की पांच मई को गुजरात के सोसिया बन्दरगाह पर एक पुराने जहाज की कटाई के दौरान फायर गैस की चपेट में आकर मौत हो गई। गौतम वहां के विजय वसंल सी.व्रेक्रिगं कंम्पनी 158 में काम करता था। उसका शव आठ मई को गांव आया। सोसिया बन्दरगाह पर काम करने वाले गौतम के ही गांव के अच्छेलाल ने बताया कि कप्तानगंज के अलावे पकडियार, हरिहरनाथ, झंझवा पचार, खबराबार, धिहुही, वरवाखुर्द, नेबुआ नौरगिंया, खपरधिक्का, कुइया पिपराखुर्द, कौवासार, कोटवा सिगंहा, रामकोला के खैरटवा वरवाखुर्द, परसौनी, अडरौना के अलावे महाराजगंज के धुधली नेबुइया के मजदूर यहां कार्य कर रहे है। अच्छेलाल के अनुसाार जहाज काटने के बाद जब रिगं लेकर पानी में उतरते हैं तो उस समय खतरे ज्यादा रहते हैं। फायर गैस के चपेट में आने का खतरा बराबर बना रहता है। कम्पनी वाले पी.एफ तो काटते हैं पर पैसा मिलता नही है।

21 वर्ष में 372 दुर्घटनाएं हुईं
ग्रीन पीस और एफआईडीएच की एक रिपोर्ट ( इंड आफ लाइफ शिप्स-द हयूमन कास्ट आफ ब्रेकिंग शिप्स ) के मुताबिक विश्व के आधे से अधिक समुद्री जहाज अपनी आयु पूरी करने के बाद गुजरात के एलेंज समुद्री तट पर आते हैं जहां उन्हें तोड़ने का काम होता है। इन जहाजों को तोड़कर उनमें से आवश्यक धातुओं को निकाला जाता है जो नए जहाजों के निर्माण में काम आता है। बाकी कबाड़ के रूप में प्रयोग होता है। एलेंज समुद्री तट पर उड़ीसा, बिहार, पश्चिमी बंगाल और उत्तर प्रदेश के हजारों मजदूर काम करते हैं। जहाज तोड़ने का काम अत्यन्त जोखिम भरा है क्योंकि उनको तोड़ते समय कई प्रकार की जहरीली गैसें निकलती हैं जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होती हैं लेकिन मजदूरों को इन्ही जहरीली गैसों के बीच काम करना पड़ता है। परिणाम स्वरूप वे कई तरह की खतरनाक बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा काम करते समय सिलेण्डर फटने व लोहे की चादर गिरने की घटनाए बहुत होती हैं जिसमें मजदूरों की मौत हो जाती है। इस तरह की घटनाओं का सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है। गुजरात मेरीटाइम बोर्ड के रिकार्ड के अनुसार 1983 से 2004 तक जहाज तोड़ने के दौरान 372 दुर्घटनाएं हुईं। बांग्लादेश के चिटगांव में समुद्री जहाज तोड़ने के दौरान होनी वाली दुर्घटनाओं में एक हजार मजदूरों के मर जाने का अनुमान है। इस रिपोर्ट के मुताबिक जहाज तोड़ने के काम में लगे मजदूर बहुत ही गरीब परिवार के होते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए किसी प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जाती है जिससे दुर्घटनाओं की संख्या ज्यादा है। इन मजदूरों को काम की भी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है न ही उन्हें उचित पारिश्रमिक मिलती है।
गौतम के बच्चों को कौन देगा सहारा
पाॅच मई को गुजरात के सोसिया बन्दरगाह पर जहाज की कटाई के दौरान फायर गैस के चपेट में आने से मरे कप्तानगंज व्लाक के बसहिया ग्राम निवासी गौतम साहनी के परिजन आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं लेकिन उन्हें कोई सहारा देने वाला नहीं है। जिस कम्पनी के लिए वह काम करता था उसने भी गौतम के परिजनों की कोई मदद नहीं की है। गौतम के परिवार में उसके बुजुर्ग पिता पारस साहनी (65), पत्नी सोमारी (22) और दो छोटे बच्चे पुत्र अभिशेष (3) व पुत्री अर्चना (6माह) हैं।

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