शुक्रवार, 28 जून 2013

गांव छोड़ब नाहीं के साथ उठा पहले सलेमपुर फिल्म फेस्टिवल का पर्दा

गाड़ी लोहरदगा देख सलेमपुर के लोगों का याद आई अपनी बरहजिया ट्रेन
गांव छोड़ब नाहीं के साथ उठा पहले सलेमपुर फिल्म फेस्टिवल का पर्दा

बरहजिया ट्रेेन की याद दिलाने वाली डाक्यूमेंटरी गाडी लोहरदगा मेल के प्रदर्शन के साथ पहला सलेमपुर फिल्म फेस्टिवल शुक्रवार को शुरू हुआ। बापू महाविद्यालय के नवनिर्मित सभागार में आयोजित दो दिवसीय इस फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन रांची से आए फिल्मकार बीजू टोप्पो ने किया।
जन संस्कृति मंच की देवरिया इकाई और लोक तरंग फाउंडेशन ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित फिल्म फेस्टिवल के पहले दिन दो डाक्यूमेंटरी, एक वीडियो म्यूजिक और एक फीचर फिल्म का प्रदर्शन किया गया। सबसे पहले वीडियो म्यूजिक गांव छोड़ब नाहीं दिखाई गई। यह वीडियो म्यूजिक विकास के नाम पर किए जा रहे जबरन विस्थापन के खिलाफ आदिवासियों, मजदूरों के संघर्ष को सलाम करती है। इसमें आदिवासी, मजदूर और किसान संकल्प लेते हैं कि वे जल, जंगल, जमीन से बेदखल किए जाने के खिलाफ अपने संघर्ष को जारी रखेंगे और किसी भी कीमत पर अपने गांव, नदी, जंगल, जमीन को कार्पोरेट लूट का हिस्सा नहींे बनने देंगे। इसके बाद रांची से लोहरदगा के बीच मीटर गेज पर चलने वाली पैसेन्जर ट्रेन पर बनी डाक्यूमेंटरी गाड़ी लोहरदगा मेल दिखाई गई। नौ दशक से अधिक समय तक रांची और लोहरदगा के बीच गांवों के ग्रामीणों के लिए लाइफ लाइन यह टेªन 2003 में बंद हो गई थी। इस टेन में फिल्मकार मेघनाथ, बीजू टोप्पो के साथ संस्कृति कर्मियों ने यात्रा की। ट्रेन में यात्रा कर रहे संस्कृति कर्मीै इस टेन के महत्व और ग्रामीणों से रिश्ते को अपने गीतों में व्यक्त करते है। फिल्म के निर्माण के बारे में बीजू टोप्पो ने बताया कि इस डाक्यूमेंटरी को तीन दिन की शूटिंग में बनाया था।
डाक्यमेंटरी प्रतिरोध में झारखंड के रांची के निकट नगड़ी गांव में इंडियन इंस्टीच्यूट आफ मैनेजमेंट और विधि विश्वविद्यालय के लिए 277 एकड़ उपजाउ कृषि जमीन हडपने की कोशिश के खिलाफ किसानों, आदिवासियों के संघर्ष के दास्तान को बयां किया गया है। इस जमीन को वर्ष 1957 में अधिग्रहीत करने की कोशिश हुई थी जिसे किसानों ने अपने संघर्ष से विफल कर दिया था। इस फिल्म का भी निर्माण बीजू टोप्पो और मेघनाथ ने किया है। इस डाक्यूमेंटरी के बाद दर्शकों ने फिल्मकार बीजू टोप्पों से बातचीत भी की।
पहले दिन की आखिरी फिल्म  के रूप में वर्ष 1990 में बनी तपन सिन्हा की फीचर फिल्म एक डाक्टर की मौत दिखाई गई। यह फिल्म कुष्ठ रोग के इलाज की दवा विकसित कर रहे एक डाक्टर की कहानी है जिसे साथी डाक्टरों और नौकरशाही के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। उसकी खोज को दबा दिया जाता है और इसी रोग की दवा के अविष्कार का श्रेय दो अमरीकी वैज्ञानिकों को मिल  जाता है। इस सदमे से डाक्टर उबर नहीं पाता और वह अंत में विदेश जाकर काम करने के अनुरोध को स्वीकार कर लेता है। सरकारी तंत्र की पोल खोलती यह फिल्म पंकज कपूर के यादगार अभिनय के लिए आज भी याद की जाती है।

सत्ता द्वारा दबा दिए गए सच को सामने ला रही हैं डाक्यूमेंटरी-बीजू टोप्पो
फिल्म फेस्टिवल का उद्घाटन करते हुए रांची से आए फिल्मकार बीजू टोप्पो ने कहा कि आज झारखंड, उड़़ीसा, छत्तीसगढ सहित कई राज्यों में जल, जंगल, जमीन की कार्पोरेट लूट हो रही है। सरकार इस लूट में बराबर की साझीदार है। इसके खिलाफ आदिवासियों, किसानों के संघर्ष को मुख्य धारा का मीडिया, सिनेमा जगह देने को तैयार नहीं है। इस स्थिति में डाक्यूमेंटरी फिल्मकार सीमित साधनों में उत्पीडि़तों की आवाज और जमीनी सच को डाक्यूमेंटरी सिनेमा के जरिए देने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह के फिल्म फेस्टिवल सत्ता और कार्पोरेट द्वारा दबा दिए गए सच को दिखाने का महत्वपूर्ण मंच बन रहे है। जन संस्कृति मंच के फिल्म समूह द ग्रुप के राष्ट्रीय संयोजक संजय जोशी ने कहा कि प्रतिरोध का सिनेमा की सबसे बडी ताकत जन सहयोग से इसका आयोजित होना है। जनता का सिनेमा, जनता के ही सहयोग से बन सकता है और उसको दिखाया जा सकता है। जन संस्कृति मंच के राष्टीय पार्षद अशोक चैधरी ने जिस देश ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों को बेमिसाल संघर्ष के जरिए खदेड़ दिया था उस देश की जनता को बताया जा रहा है कि अमरीकी संस्कृति ही हमारी उद्धारक है। प्रतिरोध का सिनेमा लूट की संस्कृति, रंगीन चमकती हुई दुनिया और इसके कारोबारियों के खिलाफ संघर्षशील जनता का मंच है। डाक्यूमेंटरी सिनेमा के निर्माण, उसको दिखाने के प्रयासों व दर्शकों के रिस्पांस पर रिसर्च कर रहीं मोनाश यूनिवर्सिटी आस्टेलिया की श्वेता किशोर ने कहा कि डाक्यूमेंटरी सिनेमा का छोटे कस्बों में दिखाने का काम बहुत महत्वपूर्ण है और मेरे लिए सलेमपुर जैसे स्थान पर फिल्म फेस्टिवल का आयोजन देखना एक विशिष्ट अनुभव है। उन्होंने कहा कि जब हम सिनेमा हाल मे फिल्म देखने जाते हैं तो  ग्राहक होते हैं लेकिन इस तरह के आयोजनों में दर्शक एक साझीदार के रूप में आते है। जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सचिव मनोज कुमार सिंह ने प्रतिरोध के सिनेमा की यात्रा का विस्तार से जिक्र करते हुए कहा कि सलेमपुर फिल्म फेस्टिवल से हम प्रतिरोध के सिनेमा के तीसरे चरण में प्रवेश कर रहे है। इसके बाद सलेमपुर जैसे छोटे-छोटे कस्बों में इस तरह के आयोजनों का सिलसिला शुरू होगा। धन्यवाद ज्ञापन उद्भव मिश्र ने किया। उदघाटन सत्र का संचलान लोक तरंग फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष मिनहाज सोहग्रवी ने किया। उद्घाटन सत्र में उत्तराखंड मे बाढ, भूस्लखन से हुई त्रासदी में मारे गए लोगों को एक मिनट मौन रखकर श्रद्धाजंलि दी गई।

सलेमपुर फिल्म फेस्टिवल के दूसरे दिन पूर्वांचल के त्रासदी इंसेफेलाइटिस पर  गोरखुपर फिल्म सोसाइटी द्वारा बनायी गई डाक्यूमेंटरी खामोशी तथा चर्चित शायर तश्ना आलमी द्वारा लखनउ फिल्म सोसाइटी द्वारा बनायी गई डाक्यूमेंटरी अतश का प्रदर्शन किया गया। इसके अलावा विश्व सिनेमा से सलेमपुर के लोगों से परिचय कराने के उद्देश्य से मशहूर इरानी फिल्मकार माजिद मजीदी की चिल्ड्रेन आफ हैवेन तथा कई लघु फिल्में दिखाइ्र गईं। फेस्टिवल के समापन के मौके पर जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार मिश्र के निधन पर एक मिनट मौन रखकर श्रद्धाजंलि दी गई।
दुसरे दिन  फेस्टिवल को चार सत्रों में बांटा गया था। पहले सत्र में लघु और एनिमेशन फिल्मों के तहत नार्मन मैक्लारेन की नेबर और चेयरी टेल दिखाई गई। नेबर युद्ध विरोधी फिल्म है और यह हमें पड़ोसियों से प्रेम करने का संदेश देती है। इसमें एक खिले फूल को पाने के लिए दो पड़ोसियों के बीच लड़ते हुए मर जाने के रूपक का इस्तेमाल करते हुए बताया गया है कि कैसे झूठे दंभ और ईष्र्या में हम अपने अंदर के मानवीय संवेदनाओं को मार देते हैं और एक हिंसक मनुष्य में तब्दील हो जाते है। चेयरी टेल किताब पढ़ते एक व्यक्ति के कुर्सी पर बैठने की कोशिशों के जरिए सत्ता सम्बन्धांे की बेहद खूबसूरत तरीके से दिखाती है।
फ्रांस के फिल्मकार अलबर्ट लेमोरेसी की शार्ट फिल्म रेड बैलून दर्शकों को खूब पंसद आई। यह फिल्म एक छोटे बच्चे की लाल गुब्बारे से दोस्ती की कहानी है। स्कूल जाते वक्त बच्चे को एक लाल गुब्बारा मिल जाता है जिसे वह हमेशा अपने पास रखता है। घर और स्कूल के लोग इस लाल गुब्बारे को बच्चे से दूर करने की कोशिश करते हैं लेकिन वह हमेशा वापस आ जाता है। लाल गुब्बारे से ईष्या रखने वाले बच्चे एक दिन लाल गुब्बारे को पकड़कर फोड़ देते हैं। इससे दुखी बच्चे को हजारों की संख्या में आए गुब्बारे अपने साथ उड़ाते हुए पेरिस की सैर कराते है। दूसरे सत्र में इरान के प्रसिद्ध फिल्मकार माजिद मजीदी की चिल्डेन आफ हैवेन को दर्शकों ने उमस भरी गर्मी के बीच बड़ी तल्लीनता से देखा। इस फिल्म एक गरीब परिवार के दो बच्चों अली व जेहरा की कहानी है जो एक जोड़ी जूते को ही बारी-बारी पहन कर स्कूल जाते है। अली अपनी बहन के लिए एक जोड़ी जूते पाने के इरादे से रेस कम्पटीशन में भाग लेता है। वह इतनी तेज दौड़ता है उसके प्रथम स्थान मिलता है। उसे बड़ी से ट्राफी दी जाती है और लोग उसे कंधों पर बिठकार खुशी मनाते हैं कि लेकिन अली रो रहा है क्योंकि वह कम्पटीशन में तीसरे स्थान के बजाय फस्र्ट आ गया। वह तीसरे स्थान पर आता तो उसे इनाम में एक जोड़ी जूते मिलते जो वह अपनी बहन को देता।
फेस्टिवल का तीसरा सत्र पूर्वांचल की फिल्मों के नाम रहा। इस सत्र में चार फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। फेस्टिवल के आयोजन से जुड़े सलेमपुर के आशीष सिंह और बलदाउ विश्वकर्मा की भोजपुरी फिल्म तोहरी खातिर शराब से बर्बाद होते परिवारों की कहानी है तो सावधान एचआईवी/एड्स के प्रति जागरूक करने वाली म्यूजिक वीडियो है। शायर तश्ना आलमी पर बनी डाक्यूमेंटरी अतश का प्रदर्शन आज के दिन का खास आकर्षण थी। लखनउ के बशीरतपुर के तंग गली में रहने वाला यह शायर अपनी रचनाओं से गरीबी, जातीय भेदभाव, बेरोजगारी और समाज की विद्रूपताओं पर करारा प्रहार करता है। उनकी शायरी में गांवों से शहर की ओर भागते ग्रामीणों के दर्द को आवाज देती है। तश्ना आलमी सलेमपुर के एक गांव शामपुर के मूल निवासी है। अपने जवार के शायर को सिनेमा के पर्दे पर देख दर्शक रोमांचित थे। इस डाक्यूमेंटरी का निर्माण लखनउ फिल्म सोसाइटी की ओर से युवा फिल्मकार अवनीश सिंह ने किया है। इस मौके पर शायर तश्ना आलमी मौजूद थे।
इसके बाद इंसेफेलाइटिस की त्रासदी पर बनी डाक्यूमेंटरी खामोशी दिखाई गई।  गोरखपुर और कुशीनगर जिले में इंसेफेलाइटिस से मरे और विकलांग हुए बच्चों के जरिए रोग की भयावहता, स्वास्थ्य तंत्र की नाकामी को हमारे सामने रखती हुई यह फिल्म सवाल उठाती है कि इस त्रासदी पर हमारा राजनीतिक तंत्र इसलिए खामोश है क्योंकि इस बीमारी के शिकार बच्चे गरीबों के लाल है। इस डाक्यूमंेटरी के प्रदर्शन के बाद दर्शकों ने इसके निदेशक संजय जोशी और मनोज कुमार सिंह से बात भी की। सभी सत्रो का संचालन करते हुए फिल्मों का परिचय संजय जोशी ने दिया।
जन संस्कृति मंच की देवरिया इकाई और लोक तरंग फाउंडेशन ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में बापू महाविद्यालय के सभागार में आयोजित इस फेस्टिवल का समपान सांस्कृतिक कार्यक्रमों और कवि सम्मेलन के साथ हुआ। सांस्कृतिक कार्यक्रम में लघु नाटक का मचन के साथ-साथ लोक नृत्य और लोक गीत भी प्रस्तुत किए गइ। जसम की देवरिया इकाई के संयोजक उदभव मिश्र और लोकतरंग फाउंडेशन टस्ट के अध्यक्ष मिनहाज सोहाग्रवी ने फेस्टिवल को सफल बनाने के लिए सलेमपुर के लोगांे को बधाई दी।


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