प्रेमचन्द पार्क में युवा कवि मनोज पांडेय का कविता पाठ
गोरखपुर। युवा कवि मनोज पांडेय इतिहास और राजनीति की गहरी अन्र्तदृष्टि रखने वाले कवि है। यही कारण है कि वह बाबर जैसी कविता लिख पाते है। वह युवा कवियों की उस धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें वर्तमान काव्य धारा को अतिक्रमित कर नई दिशा में ले जाने की संभावना दिख रही है।यह बातें वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने शनिवार की शाम प्रेमचन्द साहित्य संस्थान द्वारा प्रेमचन्द पार्क में आयोजित युवा कवि मनोज पांडेय की कविताओं पर बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि कविता और कहानी के क्षेत्र में सक्रिय युवा पीढी पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनमें इतिहास और राजनीति की समझ नहीं है और उनका अनुभाव एकांगी है। इसी कारण उनकी कविताओं का फलक बड़ा नहीं है लेकिन मनोज पांडेय इनसे एकदम अलग हैं और हमें उनसे काफी उम्मीद है।
इसके पहले युवा कवि मनोज पांडेय ने बाबर, गांधी कैसे गए थे चम्पारण, हमारा समय, चुक जाने के बाद, समझदार लोग, एकतरफा प्रेम, नई पहल, गंध-संवाद, इरोम शर्मिला के लिए शीर्षक कविताओं का पाठ किया। मनोज पांडेय दिल्ली में अध्यापक हैं। मूल रूप से गोरखपुर के निवासी मनोज पांडेय की कविताओं ने इधर समीक्षकों और साहित्कारों का ध्यान आकर्षित किया। उनकी कविताएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और चर्चा का विषय बनी हैं।
उनकी कविताओं पर चर्चा शुरू करते हुए युवा साहित्यकार उन्मेष सिन्हा ने कहा कि मनोज की कविताएं व्यंग्यधर्मी कविताए हैं। उनकी कविताएं इतिहास से जिरह करती है। संकटग्रस्त व्यक्ति को अपना हमसफर बनाती है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक चैधरी ने कहा कि मनोज की कविताएं नई मान्यताओं का खोज करती है। वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चैधरी ने कहा कि मनोज की कविताएं समय से मुंह चुराने के बजाय उससे मुठभेड़ करती है। वरिष्ठ कवि श्रीधर मिश्र ने बाबार कविता की प्रशंसा करते हुए कहा कि बाबर के पिता चरित्र का स्थापत्य गढ़ मनोज चुनौती पेश करते है। मनोज प्रतीकों और विम्बों का नय अर्थ प्रकीर्णन कर रहे है। आनन्द पांडेय ने कहा कि मनोज पांडेय की कई कविताएं खास वैचारिक ढांचे और संस्कृतिकरण को तोड़ती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अमोल राय ने कहा कि आज की कविताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे इतिहास का अनुसंधान कर पा रहीं हैं कि नहीं और उनका राजनीतिक विश्लेषण का तात्पर्य हमारे समय के साथ बैठ रहा है कि नही। मनोज की कविताएं दुर्बुद्ध नहीं हैं और इतिहास का अनुसंधान करने में समर्थ हैं। बातचीत में चतुरानन ओझा, नितेन अग्रवाल, मधुसूदन सिंह, विकास द्विवेदी, बैजनाथ मिश्र, आरके सिंह आदि ने भी भागीदारी की। संचालन करते हुए प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने कवि मनोज पांडेय का परिचय प्रस्तुत किया।
मनोज पांडेय की कविताएं आप भी पढें-
बाबर
तुमने अपने बेटे से
अपने लिए
उसकी जवानी नहीं मांगी
न ही
उसे चौदह क्या,दो दिन के लिए भी
दिया वनवास
कि,निभ जाये ,तीसरी पत्नी को दिए
"प्राण जाए पर वचन न जाए "
की कुल रीति
न ही
बुढौती में उठने वाली
वासना की छणिक कौंध में ;
अपने बेटे से करवाई
भीषण प्रतिज्ञा
न ही
जिंदगी के बाकी बचे दो चार दिनों न
में 'जनम-जनम का साथ निभाने' आई
चौथी-पाचवीं ........पत्नी के बहकावे में
अपने बेटे की आँखों में
उसके अपने हाथों से
गर्म सलाखें डलवाई
मैं !!!!!!
न अशोक
न शांतनु
न दशरथ
और
न ही ययाति
मैं....
तुम्हारी तरह पिता होना
चाहता हूँ
बाबर
(बिहार जाने वाली ट्रेनों के जनरल बोगी में यात्रा करने वालों के प्रति)
पहली बार
चम्पारण
किस ट्रेन से गए थे
गाँधी ?
'सत्याग्रह' पकड़ी थी,तो
गोरखपुर उतरे या
छपरा
आम्रपाली थी तो
कितनी लेट
तीसरे दर्जे के डिब्बे में
जगह पाने के लिए
गाँधी! कितने घंटे पहले
स्टेशन पर आ गए थे
तुम ?
लाइन में कितनी देर खड़ा रहना पड़ा था ?
कस्तूरबा भी रही होंगीं
एक बेटे को गोदी उठाए
और दूसरे की अंगुली पकडे
मोटरी-गठरी भी रही होगी साथ
लाइन सीधी कराने में
आर० पी० यफ० के सिपाही ने
कितनी बार डंडे फटकारे थे ?
गालिओं की गिनती नहीं की होगी
तुमने ?
शायद
योग भी करते थे तुम
हाँ ,बताओ मूत्रयोग
में कितनी पीड़ा हुई थी
पादते-गंधाते लोगों के
बीच!
तीसरे दर्जे के आदमी को
अपनी पेशाब रोकने में
महारत हासिल होती है ना !
टिकट होने के बाद भी
जी० आर० पी० और टी० टी० बाबू को
कितने रुपये दिए थे ?
टिन के डब्बे के साथ
कपडे के थैले का अलग
हिसाब भी तो जोड़ा
होगा टी० टी० बाबू ने
गाँधी !
तुम्हारा तीसरा दर्जा
सत्याग्रह,जननायक
सम्पूर्णक्रांति,सप्तक्रांति
सदभावना,वैशाली
और न जाने कितनी ट्रेनों
के जनरल डिब्बों से कितना
मिलता था
कभी मिलें तो
बताना !!!!!
हमारा समय
हमारे लिए हमारा समय ही
चुनौती है
आकर्षण है
आधार है
दुधारी तलवार है
चुक जाने के बाद
सब कुछ बेच- खरीद कर
चुक जाने के बाद
आना लौट कर
अपनी कविता के पास
किसी भी रस्ते से
पर दुकान से होते नहीं
पूरी की पूरी तुम्हारी होगी
बिना ख़रीदे , बिना बेचे
आना अपनी कविता के पास
अच्छर ग्यान से ही काम चलेगा
गणित न आती हो तो भी
गढ़ सको, तो गढ़ना
रच सको, तो रचना
लिख सको, तो लिखना
देख सको, तो देखना
पढ़ सको, तो पढना
पूरा का पूरा महसूस कर सकोगे
अपने आपको
सब कुछ बेच- खरीद कर
चुक जाने के बाद
खोजना अपनी कविता को
बंद आखों से काम चलेगा
अच्छर चीन्ह न पाओ तब भी
देखना, किसी की आँखों में
छूना, किसी की घुंघराली लटों में
सुनना, किसी तोतली बोली में
सूँघना, धरती से उठती गंध में
चखना, अनजानी रिश्तों के रस में
बिना ख़रीदे बिना बेचे
पाओगे
कि, कविता तुम्हारी ही है .
सब कुछ बेच- खरीद कर
चुक जाने के बाद
आना ही है, लौट कर
एक न एक ........................
दिन
कभी न कभी
कभी न कभी
समझदार लोग
समझदार लोग
साध लेते है
छल,छंद,औ’ दम्भ
समझदार लोग जब बोलते है ‘हम’ की भाषा तो
प्रभावी ढ़ंग से उभरता है उनका ‘मैं’
यह उनकी भाषा
‘साधने’ की कला है ।
समझदार लोग रचते हैं
रचकर उसी में बसते हैं
अपने रचे में
अपनों को भी बसाते हैं
ज्यादा सही कि अपनों को ही बसाते हैं
समझदार लोग सूंघ लेते हैं
अवसर
और कलात्मक ढ़ंग से बना देते है
अपने आप को अपरिहार्य
इस तरह
समझदार,अंततः समझदार बना रहता है
. एक तरफा प्रेम
बार-बार हमें
बताया जाता है कि
बहुत सुंदर है हमारा देश
हजारों हजार प्रेम करने वाले लोगों की
सुनाई जाती है कहानियां
नियम और फायदे गिनाते हुए
संगीनों और बूटों की चमक-धमक के साथ
कहा जाता है कि जो ‘हमारा’ है
इसलिए मान लो कि ‘तुम्हारा’ भी है ।
अब लाजमी है कि
प्रेम करो..........तुम
लेकिन ..
मैं नहीं कर सकता
नहीं ही कर सकता ....कि
मालूम है मुझे
‘एकतरफा प्रेम’ मनोरोग है ......
इरोम शर्मिला के लिए
तुमने कहा कि
“तुम्हे जीवन से प्यार है”
जीवन
और
प्यार
इन्हीं दो शब्दों से डरते है वो
मृत्यु
और
भय
इन दो शव्दों से डराते है वो
.. ..
तुमने कहा कि
“तुम्हे जीवन से प्यार है”
वे भी इतना ही चाहते है
बस जोड़ लो
एक हर्फ़ और
“तुम्हे अपने जीवन से प्यार है”
केवल अपने जीवन से प्यार करने वाले
उनको बहुत प्यारे लगते है
.. ..
तुमने कहा कि
“तुम्हे जीवन से प्यार है”
जीवन
और
प्यार
इन दो शब्दों को जीने के लिए
तुम,
मरने के लिए भी तैयार हो
जीने के लिए मरना
ये उल्टा है उनके हिसाब से
वो
मारे जाने तक जिन्दा चाहते है तुम्हे
.. ..
गाँधी की निश्छल मुस्कान पर
तुमने जताया अपना हक
और वो
जलियांवाला बाग़ की संगिनो को
अपने हिस्से में गिनते है
.. ..
तुमने कहा कि
“तुम्हे जीवन से प्यार है”
इसी प्यार की ताप में तप
चाहती हो अपने मरने का अधिकार
और वो
नही छोड़ना चाहते, तुम्हे
मारने का हक
चाँदमारी उनकी कर्तव्यनिष्ठां है
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