रविवार, 9 जून 2013

इतिहास व राजनीति की गहरी समझ वाले कवि है मनोज पांडेय -मदन मोहन

प्रेमचन्द पार्क में युवा कवि मनोज पांडेय का कविता पाठ
गोरखपुर। युवा कवि मनोज पांडेय इतिहास और राजनीति की गहरी अन्र्तदृष्टि रखने वाले कवि है। यही कारण है कि वह बाबर जैसी कविता लिख पाते है। वह युवा कवियों की उस धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसमें वर्तमान काव्य धारा को अतिक्रमित कर नई दिशा में ले जाने की संभावना दिख रही है।
यह बातें वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने शनिवार की शाम प्रेमचन्द साहित्य संस्थान द्वारा प्रेमचन्द पार्क में आयोजित युवा कवि मनोज पांडेय की कविताओं पर बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि कविता और कहानी के क्षेत्र में सक्रिय युवा पीढी पर यह आरोप लगाया जाता है कि उनमें इतिहास और राजनीति की समझ नहीं है और उनका अनुभाव एकांगी है। इसी कारण उनकी कविताओं का फलक बड़ा नहीं है लेकिन मनोज पांडेय इनसे एकदम अलग हैं और हमें उनसे काफी उम्मीद है।
इसके पहले युवा कवि मनोज पांडेय ने बाबर, गांधी कैसे गए थे चम्पारण, हमारा समय, चुक जाने के बाद, समझदार लोग, एकतरफा प्रेम, नई पहल, गंध-संवाद, इरोम शर्मिला के लिए शीर्षक कविताओं का पाठ किया। मनोज पांडेय दिल्ली में अध्यापक हैं। मूल रूप से गोरखपुर के निवासी मनोज पांडेय की कविताओं ने इधर समीक्षकों और साहित्कारों का ध्यान आकर्षित किया। उनकी कविताएं कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं और चर्चा का विषय बनी हैं।
उनकी कविताओं पर चर्चा शुरू करते हुए युवा साहित्यकार उन्मेष सिन्हा ने कहा कि मनोज की कविताएं व्यंग्यधर्मी कविताए हैं। उनकी कविताएं इतिहास से जिरह करती है। संकटग्रस्त व्यक्ति को अपना हमसफर बनाती है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक चैधरी ने कहा कि मनोज की कविताएं नई मान्यताओं का खोज करती है। वरिष्ठ रंगकर्मी राजाराम चैधरी ने कहा कि मनोज की कविताएं समय से मुंह चुराने के बजाय उससे मुठभेड़ करती है। वरिष्ठ कवि श्रीधर मिश्र ने बाबार कविता की प्रशंसा करते हुए कहा कि बाबर के पिता चरित्र का स्थापत्य गढ़ मनोज चुनौती पेश करते है। मनोज प्रतीकों और विम्बों का नय अर्थ प्रकीर्णन कर रहे है। आनन्द पांडेय ने कहा कि मनोज पांडेय की कई कविताएं खास वैचारिक ढांचे और संस्कृतिकरण को तोड़ती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अमोल राय ने कहा कि आज की कविताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे इतिहास का अनुसंधान कर पा रहीं हैं कि नहीं और उनका राजनीतिक विश्लेषण का तात्पर्य हमारे समय के साथ बैठ रहा है कि नही। मनोज की कविताएं दुर्बुद्ध नहीं हैं और इतिहास का अनुसंधान करने में समर्थ हैं। बातचीत में चतुरानन ओझा, नितेन अग्रवाल, मधुसूदन सिंह, विकास द्विवेदी, बैजनाथ मिश्र, आरके सिंह आदि ने भी भागीदारी की। संचालन करते हुए प्रेमचन्द साहित्य संस्थान के सचिव मनोज कुमार सिंह ने कवि मनोज पांडेय का परिचय प्रस्तुत किया।

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