सोमवार, 9 मई 2011

साम्प्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार हैं लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन असगर अली इंजीनियर

20 अप्रैल को पीपुल्स फोरम के तत्वावधान में निपाल लाज के सभागार में साम्प्रदायिकता की राजनीति और लोकतंत्र पर असगर अली इंजीनियर का व्याख्यान हुआ। प्रस्तुत है उसकी एक रिपोर्ट


गोरखपुर। साम्प्रदायिकता, जातिवाद और भ्रष्टाचार लोकतंत्र के तीन सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनके खिलाफ लडाई एक बार में खत्म नहीं होने वाली है। इनके खिलाफ निरन्तर संघर्ष जरूरी है क्योंकि साम्प्रदायिक, जातिवादी और भ्रष्ट ताकते लगातार अपना काम करती रहती हैं। हमें इनके खिलाफ संघर्ष करते हुए डेमोक्रेसी, डायवर्सिटी और डायलाग के लिए काम करना होगा।
यह बातें प्रख्यात इस्लामिक विद्वान एवं लेखक असगर अली इंजीनियर ने बुधवार को सिविल लाइंस स्थित लाज निपाल के सभागार में पीपुल्स फोरम के तत्वावधान में साम्प्रदायिकता की राजनीति और लोकतंत्र विषय पर अपने व्याख्यान में कही। उन्होंने कहा कि धर्म कभी एक दूसरे को नहीं लड़ता। निहित स्वार्थों के को पूरा करने के लिए धर्म को लड़ाई का हथियार बनाया जाता है। सच्चे लोकतंत्र में स्वार्थों का संघर्ष कम होता है जबकि हमारे देश के लोकतंत्र में यह बढता है। उन्होंने कहा कि साम्प्रदायिकता तो दिखती है लेकिन जातिवाद अदृश्य रहकर काम करता है। हमें साम्प्रदायिकता के साथ-साथ जातिवाद के खिलाफ भी जबर्दस्त मुहिम चलानी चाहिए। उन्होंने साम्प्रदायिकता के लिए राजनेताओं के बजाय सिविल सोसाइटी को ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हुए कहा सिविल सोसाइटी को आलोचनात्मक नजरिए से देखना चाहिए। हम जातिवाद से बाहर नहीं निकलता चाहते। शिक्षा के पाठ्यक्रम पूर्वाग्रहों से भरे हुए हैं। हम भ्रष्टाचार के खिलाफ बात करते हैं लेकिन सुविधाओं के लिए रिश्वत देने से बाज नहीं आते। हमारे समाज में जेंडर भेदभाव बहुत है। राजनीतिज्ञ हमारी इन कमजोरियों का फायदा उठाते हैं।
श्री इंजीनियर ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज को हर तरह के भेदभाव से मुक्त होना चाहिए। जाति, धर्म, लिंग, भाषा की बुनियाद पर भेदभाव वाले समाज में सच्चा लोकतंत्र नहीं आ सकता है। अमरीका, फ्रांस, स्विटजरलैण्ड में भी कई तरह के भेदभाव हैं। इसलिए मै अमरीकी समाज को सही मायने में डेमोक्रेटिक नहीं मानता।
50 से अधिक पुस्तक लिख चुके इंजीनियर ने मल्टीपल आइडेन्टिटी को लोकतत्र की मजबूती के लिए आवश्यक बताते हुए कहा कि 1857 तक हमारी पहचान धार्मिक नहीं थी। अंग्रेजो ने अपनी राजनीति के तहत हमारी पहचान को धार्मिक बनाया। उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को पूरी तौर पर सुधारने पर जोर देते हुए कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था मानने वाला दिमाग पैदा कर रहा है


जबकि हमें सोचने वाला दिमाग चाहिए। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था सिर्फ नकारात्मक चीजे दे रहा है। वह हमको आजादी का जज्बा, सोचने की योग्यता और वाद-विवाद करने की क्षमता नहीं दे पा रही है। भ्रष्टाचार और उसके खिलाफ अन्ना हजारे के ताजा आन्दोलन की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए और न ही इसे किसी एक राजनीतिक दल के खिलाफ केन्द्रित करना चाहिए। उन्होंने अपनी बातचीत में मीडिया के अन्दर भ्रष्टाचार व पेड न्यूज की भी चर्चा की और कहा कि हम किसी समाज में भ्रष्टाचार को खत्म नहीं कर सकते लेकिन कम कर सकते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लोगों में उद्देलन है।
इसके पूर्व पीपुल्स फोरम के संयोजक प्रो रामकृष्ण मणि त्रिपाठी ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि फ्रीडम आफ थाट को वोट बैंक की राजनीति से बचाना होगा। सेकुलर ताकतों को हमेशा सिद्धान्तों की बात करनी चाहिए और किसी भी कीमत पर इससे समझौता नहीं करना चाहिए। उन्होंने इतिहास की बातों में फंसने के बजाय आगेे के समाज के लिए चिंतन व काम करने पर जोर दिया। कार्यक्रम का समाहार करते हुए वरिष्ठ कथाकार प्रो रामदेव शुक्ल ने कहा कि हम सभी से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह सतत जागरूक रहे। ऐसे में बु़िद्धजीवी समाज व मिडिल क्लास से अपेक्षा है कि वह अपने आचरण से लोगों के लिए आदर्श सामने रखे। सिर्फ बातों से समाज नहीं बदलेगा बल्कि हमें इसके लिए प्रयास भी करना होगा। धन्यवाद ज्ञापन पत्रकार अशोक चैधरी ने और कार्यक्रम का संचालन मनोज कुमार सिंह ने किया।

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